आकाशगङ्गया देव्या वृतां परिखभूतया ।
प्राकारेणाग्निवर्णेन साट्टालेनोन्नतेन च ॥ १४ ॥
अनुवाद
वह पुरी आकाशगंगा नामक गंगाजल से पूर्ण खाइयों द्वारा और अग्नि जैसे रंगवाली एक अत्यन्त ऊँची दीवाल से घिरी हुई थी। इस दीवार पर युद्ध करने के लिए ऊँची मेड़ बनाई गई थी।