श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 12: मोहिनी-मूर्ति अवतार पर शिवजी का मोहित होना  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  8.12.47 
 
 
असदविषयमङ्‍‍घ्रिं भावगम्यं प्रपन्ना-
नमृतममरवर्यानाशयत् सिन्धुमथ्यम् ।
कपटयुवतिवेषो मोहयन्य: सुरारीं-
स्तमहमुपसृतानां कामपूरं नतोऽस्मि ॥ ४७ ॥
 
अनुवाद
 
  एक युवती का रूप धरकर और इस तरह राक्षसों को चकित करके भगवान ने अपने भक्तों, देवताओं को दूध के सागर के मंथन से उत्पन्न अमृत बाँट दिया। मैं उन भगवान को, जो हमेशा अपने भक्तों की इच्छाओं को पूरा करते हैं, सादर नमस्कार करता हूँ।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध आठ के अंतर्गत बारहवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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