श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 12: मोहिनी-मूर्ति अवतार पर शिवजी का मोहित होना  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  8.12.46 
 
 
एतन्मुहु: कीर्तयतोऽनुश‍ृण्वतो
न रिष्यते जातु समुद्यम: क्‍वचित् ।
यदुत्तमश्लोकगुणानुवर्णनं
समस्तसंसारपरिश्रमापहम् ॥ ४६ ॥
 
अनुवाद
 
  जो व्यक्ति क्षीरसागर के मंथन की इस कथा को नियमित रूप से सुनता या सुनाता है, उसका प्रयत्न कभी भी निष्फल नहीं जाएगा। निःसंदेह, भगवान के गुणों का कीर्तन करना ही इस भौतिक संसार में सभी दुखों को मिटाने का एकमात्र तरीका है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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