वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भागवतम
»
स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
»
अध्याय 12: मोहिनी-मूर्ति अवतार पर शिवजी का मोहित होना
»
श्लोक 45
श्लोक
8.12.45
श्रीशुक उवाच
इति तेऽभिहितस्तात विक्रम: शार्ङ्गधन्वन: ।
सिन्धोर्निर्मथने येन धृत: पृष्ठे महाचल: ॥ ४५ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
शुकदेव गोस्वामी ने कहा : हे राजा! जिस पुरुष ने क्षीरसागर के मन्थन के लिए अपनी पीठ पर महान् पर्वत को धारण किया था, वही शार्ङ्गधन्वा नामक भगवान हैं। मैंने तुमको अभी उन्हीं के पराक्रम का वर्णन किया है।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.