श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 12: मोहिनी-मूर्ति अवतार पर शिवजी का मोहित होना  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  8.12.45 
 
 
श्रीशुक उवाच
इति तेऽभिहितस्तात विक्रम: शार्ङ्गधन्वन: ।
सिन्धोर्निर्मथने येन धृत: पृष्ठे महाचल: ॥ ४५ ॥
 
अनुवाद
 
  शुकदेव गोस्वामी ने कहा : हे राजा! जिस पुरुष ने क्षीरसागर के मन्थन के लिए अपनी पीठ पर महान् पर्वत को धारण किया था, वही शार्ङ्गधन्वा नामक भगवान हैं। मैंने तुमको अभी उन्हीं के पराक्रम का वर्णन किया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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