यं मामपृच्छस्त्वमुपेत्य योगात्समासहस्रान्त उपारतं वै ।
स एष साक्षात् पुरुष: पुराणोन यत्र कालो विशते न वेद: ॥ ४४ ॥
अनुवाद
जब मैंने एक सहस्त्र वर्षों की योग-साधना पूरी की, तब तुमने मुझसे पूछा था कि मैं किसका ध्यान कर रहा था। अब ये वही परम पुरुष हैं जिसके निकट काल तक नहीं पहुँच पाता और जिन्हें वेद भी नहीं समझ पाते।