शिवजी ने कहा: हे देवी! अब तुमने भगवान् की माया देख ली है, जो सर्वत्र व्याप्त होने के कारण और सबके अजन्मा स्वामी होने के कारण अनेक रूपों में देखी जा सकती और मानी जा सकती है। यद्यपि मैं इनके प्रमुख विस्तारों में से एक हूँ तो भी मैं उनकी शक्ति से भ्रमित हो गया था। तो फिर, उन लोगों के विषय में क्या कहा जाये जो माया पर पूर्णत: आश्रित हैं और अपनी इन्द्रियों के ज्ञान और भ्रम में फंसे हुए हैं।