श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 12: मोहिनी-मूर्ति अवतार पर शिवजी का मोहित होना  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  8.12.21 
 
 
श्लथद् दुकूलं कबरीं च विच्युतांसन्नह्यतीं वामकरेण वल्गुना ।
विनिघ्नतीमन्यकरेण कन्दुकंविमोहयन्तीं जगदात्ममायया ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  जब वो गेंद से खेलती तो शरीर पर लिपटी साड़ी ढीली पड़ जाती थी और बाल बिखर जाते थे। अपने सुंदर बाएँ हाथ से वो बाल बाँधती और दाहिने हाथ से गेंद फेंक कर खेलती रहती थी। यह नज़ारा इतना लुभावना था कि भगवान ने अपनी अंदरूनी शक्ति से हर किसी को मोह लिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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