श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 12: मोहिनी-मूर्ति अवतार पर शिवजी का मोहित होना  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  8.12.19 
 
 
आवर्तनोद्वर्तनकम्पितस्तन-प्रकृष्टहारोरुभरै: पदे पदे ।
प्रभज्यमानामिव मध्यतश्चलत्-पदप्रवालं नयतीं ततस्तत: ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  जैसे ही गेंद ऊपर उछलती और नीचे गिरती थी, वो उसे खेलती तो उसके स्तन हिलते थे और जब वह अपने मूंगा-जैसे लाल और मुलायम पैरों से इधर-उधर चलती थी तो उन स्तनों के भारी वजन और फूलों की लंबी माला से उसकी कमर हर कदम पर टूटती हुई जैसी लग रही थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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