श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 12: मोहिनी-मूर्ति अवतार पर शिवजी का मोहित होना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  8.12.10 
 
 
नाहं परायुर्ऋषयो न मरीचिमुख्याजानन्ति यद्विरचितं खलु सत्त्वसर्गा: ।
यन्मायया मुषितचेतस ईश दैत्य-मर्त्यादय: किमुत शश्वदभद्रवृत्ता: ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु! मैं तो सब देवताओं में श्रेष्ठ माना जाता हूँ, ब्रह्मा और मरीचि जैसे महर्षि सतोगुण से उत्पन्न हुए हैं। यह होते हुए भी हम सब आपकी माया से मोहग्रस्त हैं और यह नहीं समझ पाते कि यह सृष्टि क्या है। हम तो ठीक हैं, असुरों और मनुष्यों के बारे में क्या कहा जाए जो प्रकृति के निम्न गुणों (रजो और तमो गुणों) से युक्त हैं? वे आपको कैसे जान सकते हैं?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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