श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 11: इन्द्र द्वारा असुरों का संहार  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  8.11.6 
 
 
सोऽहं दुर्मायिनस्तेऽद्य वज्रेण शतपर्वणा ।
शिरो हरिष्ये मन्दात्मन्घटस्व ज्ञातिभि: सह ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  आज, मैं वही शक्तिशाली व्यक्ति अपने हजारों धारों से युक्त वज्र से तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर दूँगा। चाहे तुम मायावी कला से कितने ही चमत्कार दिखाने में सक्षम हो, पर तुम्हारा ज्ञान बहुत ही कम है। अब तुम अपने परिजनों और मित्रों के साथ मिलकर युद्धभूमि में ठहरने का ही प्रयास करो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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