श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 11: इन्द्र द्वारा असुरों का संहार  »  श्लोक 48
 
 
श्लोक  8.11.48 
 
 
बलिश्चोशनसा स्पृष्ट: प्रत्यापन्नेन्द्रियस्मृति: ।
पराजितोऽपि नाखिद्यल्ल‍ोकतत्त्वविचक्षण: ॥ ४८ ॥
 
अनुवाद
 
  बलि महाराज विभिन्न प्रकार के सांसारिक कार्यों में अत्यंत अनुभवी थे। जब शुक्राचार्य जी की कृपा से उन्हें होश आया और उनकी स्मृति लौट आई तो जो कुछ भी हो चुका था, वे सबकुछ समझ गए। इसीलिए पराजित हो जाने पर भी उन्हें कोई शोक नहीं हुआ।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध आठ के अंतर्गत ग्यारहवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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