बलि महाराज विभिन्न प्रकार के सांसारिक कार्यों में अत्यंत अनुभवी थे। जब शुक्राचार्य जी की कृपा से उन्हें होश आया और उनकी स्मृति लौट आई तो जो कुछ भी हो चुका था, वे सबकुछ समझ गए। इसीलिए पराजित हो जाने पर भी उन्हें कोई शोक नहीं हुआ।
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध आठ के अंतर्गत ग्यारहवाँ अध्याय समाप्त होता है ।