न शुष्केण न चार्द्रेण जहार नमुचे: शिर: ।
तं तुष्टुवुर्मुनिगणा माल्यैश्चावाकिरन्विभुम् ॥ ४० ॥
अनुवाद
इस तरह स्वर्ग में राजा इन्द्र ने अपनी झाग के बने हथियार से नमुचि का सिर काट दिया। वह झाग न तो सूखी थी, न ही गीली थी। तब सारे ऋषि-मुनियों ने महापुरुष इन्द्र पर फूलों की वर्षा की और माला पहनाकर उन्हें सन्तुष्ट कर दिया।