श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 11: इन्द्र द्वारा असुरों का संहार  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  8.11.4 
 
 
नटवन्मूढ मायाभिर्मायेशान् नो जिगीषसि ।
जित्वा बालान् निबद्धाक्षान् नटो हरति तद्धनम् ॥ ४ ॥
 
अनुवाद
 
  इंद्र ने कहा: हे दुष्ट! जैसे एक ठग कभी-कभी किसी बच्चे की आँखों पर पट्टी बाँधकर उसका धन चुरा लेता है, वैसे ही तू यह जानते हुए कि हम सभी ऐसी जादुई शक्तियों के स्वामी हैं, अपनी कोई जादुई शक्ति दिखाकर हमें परास्त करना चाहता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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