श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 11: इन्द्र द्वारा असुरों का संहार  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  8.11.37 
 
 
इति शक्रं विषीदन्तमाह वागशरीरिणी ।
नायं शुष्कैरथो नार्द्रैर्वधमर्हति दानव: ॥ ३७ ॥
 
अनुवाद
 
  शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा: दु:खी इंद्र के इस तरह से हताशा महसूस कर रहे थे, उसी समय एक अशुभ आवाज आकाश से बोली, "इस असुर नमुचि का नाश ना तो किसी सूखी और ना ही गीली चीज़ से किया जा सकता है।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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