श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 11: इन्द्र द्वारा असुरों का संहार  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  8.11.35 
 
 
तप:सारमयं त्वाष्ट्रं वृत्रो येन विपाटित: ।
अन्ये चापि बलोपेता: सर्वास्त्रैरक्षतत्वच: ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  यद्यपि वृत्रासुर त्वष्टा की तपस्या का निचोड़ था, फिर भी इन्द्र के वज्र ने उसका अंत किया। निश्चय ही, यही नहीं, अपितु अनेक वीर योद्धा भी जिनकी खाल को अन्य हथियार बिल्कुल नुकसान नहीं पहुँचा सकते थे, इसी वज्र से मारे गये।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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