श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 11: इन्द्र द्वारा असुरों का संहार  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  8.11.30 
 
 
अश्मसारमयं शूलं घण्टावद्धेमभूषणम् ।
प्रगृह्याभ्यद्रवत् क्रुद्धो हतोऽसीति वितर्जयन् ।
प्राहिणोद् देवराजाय निनदन् मृगराडिव ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  सिंह की गर्जना करते हुए क्रोध में आकर राक्षस नमुचि ने इस्पात की भाला उठाया हुआ था जिसमें घण्टियाँ बंधी हुई थीं और सोने के आभूषणों से सजी हुई थी। वह ऊँची आवाज़ में बोला “अब तू मर गया।” इस प्रकार इन्द्र के समक्ष जाकर उसे मारने के लिए नमुचि ने अपना हथियार चला दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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