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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
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अध्याय 11: इन्द्र द्वारा असुरों का संहार
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श्लोक 20
श्लोक
8.11.20
वचोभि: परुषैरिन्द्रमर्दयन्तोऽस्य मर्मसु ।
शरैरवाकिरन् मेघा धाराभिरिव पर्वतम् ॥ २० ॥
अनुवाद
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इन्द्र को उन कठोर, मर्मभेदी शब्दों से निंदाते हुए जिनसे हृदय छलनी हो जाते थे, इन असुरों ने उन पर बाणों की वर्षा की, जैसे वर्षा की झड़ी किसी ऊंचे पर्वत को धो देती है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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