श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 11: इन्द्र द्वारा असुरों का संहार  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  8.11.18 
 
 
सेहे रुजं सुदुर्मर्षां सत्त्वमालम्ब्य मातलि: ।
इन्द्रो जम्भस्य सङ्‌क्रुद्धो वज्रेणापाहरच्छिर: ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  यद्यपि मातलि को अत्यंत कष्ट हो रहा था, परंतु उसने बड़े धैर्य से उसे सहन किया। किंतु इंद्र जम्भासुर पर अत्यधिक क्रोधित हो गया। उसने अपने वज्र से जम्भासुर पर प्रहार किया और उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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