श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 11: इन्द्र द्वारा असुरों का संहार  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  8.11.1 
 
 
श्रीशुक उवाच
अथो सुरा: प्रत्युपलब्धचेतस:
परस्य पुंस: परयानुकम्पया ।
जघ्नुर्भृशं शक्रसमीरणादय-
स्तांस्तान्‍रणे यैरभिसंहता: पुरा ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  श्रीशुकदेव गोस्वामी ने कहा : उसके बाद, भगवान् श्रीहरि की परम कृपा से, इन्द्र, वायु आदि सारे देवता जीवित हो गये। इस प्रकार जीवित होकर सारे देवता उन्ही राक्षसों को बुरी तरह पीटने लगे जिन्होंने पहले उन्हें परास्त किया था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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