श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 10: देवताओं तथा असुरों के बीच युद्ध  »  श्लोक 55
 
 
श्लोक  8.10.55 
 
 
तस्मिन्प्रविष्टेऽसुरकूटकर्मजा
माया विनेशुर्महिना महीयस: ।
स्वप्नो यथा हि प्रतिबोध आगते
हरिस्मृति: सर्वविपद्विमोक्षणम् ॥ ५५ ॥
 
अनुवाद
 
  जैसे ही स्वप्न देखने वाले के जागते ही स्वप्न के डर समाप्त हो जाते हैं उसी तरह युद्धभूमि में भगवान के प्रवेश करते ही उनकी अलौकिक से शक्ति से राक्षसों की जादूगरी से निर्मित माया का नाश हो गया। निश्चय ही केवल भगवान के स्मरण द्वारा ही मनुष्य सभी संकटों से मुक्त हो जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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