तस्मिन्प्रविष्टेऽसुरकूटकर्मजा
माया विनेशुर्महिना महीयस: ।
स्वप्नो यथा हि प्रतिबोध आगते
हरिस्मृति: सर्वविपद्विमोक्षणम् ॥ ५५ ॥
अनुवाद
जैसे ही स्वप्न देखने वाले के जागते ही स्वप्न के डर समाप्त हो जाते हैं उसी तरह युद्धभूमि में भगवान के प्रवेश करते ही उनकी अलौकिक से शक्ति से राक्षसों की जादूगरी से निर्मित माया का नाश हो गया। निश्चय ही केवल भगवान के स्मरण द्वारा ही मनुष्य सभी संकटों से मुक्त हो जाता है।