कबन्धास्तत्र चोत्पेतु: पतितस्वशिरोऽक्षिभि: ।
उद्यतायुधदोर्दण्डैराधावन्तो भटान् मृधे ॥ ४० ॥
अनुवाद
उस युद्धभूमि में बिना सिर के बहुत से धड़ पैदा हो गए थे। वे प्रेतों की तरह, अपने हाथों में हथियार लिए, जमीन पर पड़े सिरों की आँखों से देखकर दुश्मन के सैनिकों पर हमला कर रहे थे।