श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 10: देवताओं तथा असुरों के बीच युद्ध  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  8.10.40 
 
 
कबन्धास्तत्र चोत्पेतु: पतितस्वशिरोऽक्षिभि: ।
उद्यतायुधदोर्दण्डैराधावन्तो भटान् मृधे ॥ ४० ॥
 
अनुवाद
 
  उस युद्धभूमि में बिना सिर के बहुत से धड़ पैदा हो गए थे। वे प्रेतों की तरह, अपने हाथों में हथियार लिए, जमीन पर पड़े सिरों की आँखों से देखकर दुश्मन के सैनिकों पर हमला कर रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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