युद्ध के मैदान में सिरों और अंगों से लदी हुई लाशें बिछी हुई थीं। युद्ध के दौरान युद्धभूमि वीरों के कटे सिरों से पट गई। अगिन के हमले से इन सिरों को क्षत-विक्षत कर दिया। उनकी आँखें अभी भी घूर रही थीं और क्रोध से उनके दाँत उनके होठों से लगे हुए थे। इन छिन्न सिरों के मुकुट तथा कुण्डल इस युद्धभूमि में बिखर गए थे। इसी तरह आभूषणों से सज्जित तथा विविध हथियार पकड़े हुईं अनेक भुजाएँ इधर- उधर बिखरी पड़ी थीं और हाथी की सूँडों जैसे अनेक टांगे तथा जाँघें भी इसी तरह बिखरी हुई थीं।