ऐरावतं दिक्करिणमारूढ: शुशुभे स्वराट् ।
यथा स्रवत्प्रस्रवणमुदयाद्रिमहर्पति: ॥ २५ ॥
अनुवाद
ऐरावत हाथी पर चढ़कर, जो हर जगह जा सकता है और जिसके पास जल एवं सुरा को छिड़कने के लिए एकत्रित करता है, भगवान इंद्र ऐसे दिख रहे थे, जैसे उदयगिरि से, जहाँ जल के जलाशय हैं, सूर्य निकल रहा है।