श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 10: देवताओं तथा असुरों के बीच युद्ध  »  श्लोक 13-15
 
 
श्लोक  8.10.13-15 
 
 
चित्रध्वजपटै राजन्नातपत्रै: सितामलै: ।
महाधनैर्वज्रदण्डैर्व्यजनैर्बार्हचामरै: ॥ १३ ॥
वातोद्धूतोत्तरोष्णीषैरर्चिर्भिर्वर्मभूषणै: ।
स्फुरद्भ‍िर्विशदै: शस्त्रै: सुतरां सूर्यरश्मिभि: ॥ १४ ॥
देवदानववीराणां ध्वजिन्यौ पाण्डुनन्दन ।
रेजतुर्वीरमालाभिर्यादसामिव सागरौ ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन! हे महाराज पाण्डु के वंशज! देवता और असुर दोनों ही सैनिकों के ऊपर छत्र, रंगीन झण्डियाँ और बहुमूल्य रत्नों तथा मोतियों की मूठों वाली छतरियाँ सुशोभित थीं। वे मोरपंखों और अन्य पंखों से बनी पंखियों से सजे हुए थे। उपर और नीचे के वस्त्र हवा में लहरा रहे थे जिससे सैनिक बहुत ही सुंदर दिख रहे थे और चमचमाती धूप में उनकी ढालें, गहने और तीक्ष्ण व साफ हथियार आँखों को चमका रहे थे। इस प्रकार सैनिकों की पंक्तियाँ समुद्री जीवों के झुंडों से युक्त दो महासागरों के समान प्रतीत हो रही थीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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