गृध्रै: कङ्कैर्बकैरन्ये श्येनभासैस्तिमिङ्गिलै: ।
शरभैर्महिषै: खड्गैर्गोवृषैर्गवयारुणै: ॥ १० ॥
शिवाभिराखुभि: केचित् कृकलासै: शशैर्नरै: ।
बस्तैरेके कृष्णसारैर्हंसैरन्ये च सूकरै: ॥ ११ ॥
अन्ये जलस्थलखगै: सत्त्वैर्विकृतविग्रहै: ।
सेनयोरुभयो राजन्विविशुस्तेऽग्रतोऽग्रत: ॥ १२ ॥
अनुवाद
हे राजन! कुछ सैनिक गीध, चील, बगुला, बाज और भास पक्षियों की पीठ पर बैठकर युद्ध कर रहे थे। कुछ ने विशाल मछलियों को खा जाने वाली तिमिंगलों पर, कुछ ने सरभों पर तो कुछ ने भैंसों, गैंडों, गायों, बैलों, वन-गायों तथा अरुणों की पीठ पर बैठ कर युद्ध किया। अन्य लोगों ने सियारों, चूहों, छिपकलियों, खरहों, मनुष्यों, बकरियों, काले हिरनों, हंसों और सूअरों की पीठ पर बैठ कर युद्ध किया। इस प्रकार जल, स्थल और आकाश के पशुओं की पीठ पर, जिनमें विकृत शरीर वाले पशु भी थे, बैठी दोनों सेनाएँ आमने-सामने होकर आगे बढ़ रही थीं।