श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 10: देवताओं तथा असुरों के बीच युद्ध  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  8.10.1 
 
 
श्रीशुक उवाच
इति दानवदैतेया नाविन्दन्नमृतं नृप ।
युक्ता: कर्मणि यत्ताश्च वासुदेवपराङ्‌मुखा: ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  शुकदेव गोस्वामी ने कहा : हे राजा! यद्यपि दानवों और दैत्यों ने पूरा ध्यान और प्रयास करके समुद्र का मंथन किया, परन्तु भगवान वासुदेव, परमेश्वर कृष्ण के भक्त न होने के कारण वे अमृत नहीं पी सके।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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