वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भागवतम
»
स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
»
अध्याय 1: ब्रह्माण्ड के प्रशासक मनु
»
श्लोक 17
श्लोक
8.1.17
श्रीशुक उवाच
इति मन्त्रोपनिषदं व्याहरन्तं समाहितम् ।
दृष्ट्वासुरा यातुधाना जग्धुमभ्यद्रवन् क्षुधा ॥ १७ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
श्री शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा: इस प्रकार स्वायम्भुव मनु उपनिषदों के मन्त्रों को जपते हुए समाधि में लीन हो गए। उन्हें देखकर राक्षस और असुर बहुत भूखे होने के कारण उन्हें निगलना चाहते थे इसलिए वे उनके पीछे तेज गति से दौड़ने लगे।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.