श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 1: ब्रह्माण्ड के प्रशासक मनु  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  8.1.15 
 
 
ईहते भगवानीशो न हि तत्र विसज्जते ।
आत्मलाभेन पूर्णार्थो नावसीदन्ति येऽनु तम् ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  ईश्वर स्वयं में ही पूर्ण और ऐश्वर्यशाली हैं, फिर भी वे इस भौतिक संसार के सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता हैं। इस प्रकार से कार्य करते हुए भी वे कभी इसमें उलझते नहीं हैं। इसलिए जो भक्त उनके पदचिह्नों पर चलते हैं, वे भी कभी बंधन में नहीं पड़ते।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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