स विश्वकाय: पुरुहूत ईश:
सत्य: स्वयंज्योतिरज: पुराण: ।
धत्तेऽस्य जन्माद्यजयात्मशक्त्या
तां विद्ययोदस्य निरीह आस्ते ॥ १३ ॥
अनुवाद
संपूर्ण ब्रह्मांड परम सत्य भगवान का शरीर है जिनके लाखों नाम और अनंत शक्तियाँ हैं। वे आत्म-उज्ज्वल, जन्म से रहित और अपरिवर्तनीय हैं। वे प्रत्येक वस्तु के आदि हैं, लेकिन स्वयं उनका कोई आदि नहीं है। चूंकि उन्होंने अपनी बाहरी शक्ति से इस विशाल रूप की सृष्टि की है, इसलिए यह उनके द्वारा उत्पन्न, पालन और विनाश होता हुआ प्रतीत होता है। फिर भी, वे अपनी आध्यात्मिक शक्ति में निष्क्रिय रहते हैं और भौतिक शक्ति की गतिविधियाँ उन्हें स्पर्श भी नहीं कर पाती हैं।