श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 1: ब्रह्माण्ड के प्रशासक मनु  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  8.1.10 
 
 
आत्मावास्यमिदं विश्वं यत् किञ्चिज्ज‍गत्यां जगत् ।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृध: कस्यस्विद्धनम् ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  इस ब्रह्माण्ड में परमात्मा जीव रूप में चेतन और अचेतन प्राणियों के साथ सर्वव्यापी हैं। इसलिए व्यक्ति को केवल वही स्वीकार करना चाहिए जो उसके भाग्य में लिखा है और अन्य लोगों के स्वामित्व वाली वस्तुओं को हड़पने की इच्छा नहीं करनी चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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