श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 9: प्रह्लाद द्वारा नृसिंह देव का प्रार्थनाओं से शान्त किया जाना  »  श्लोक 53
 
 
श्लोक  7.9.53 
 
 
मामप्रीणत आयुष्मन्दर्शनं दुर्लभं हि मे ।
द‍ृष्ट्वा मां न पुनर्जन्तुरात्मानं तप्तुमर्हति ॥ ५३ ॥
 
अनुवाद
 
  प्रिय प्रह्लाद, तू बहुत दिनों तक जिंदा रहे। कोई भी मुझे प्रसन्न किए बिना मुझे जान नहीं सकता, न ही मेरे महत्व को समझ सकता है, लेकिन जिसने भी मुझे देखा या प्रसन्न किया है, उसे अपनी तुष्टि के लिए पछताना नहीं पड़ता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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