मामप्रीणत आयुष्मन्दर्शनं दुर्लभं हि मे ।
दृष्ट्वा मां न पुनर्जन्तुरात्मानं तप्तुमर्हति ॥ ५३ ॥
अनुवाद
प्रिय प्रह्लाद, तू बहुत दिनों तक जिंदा रहे। कोई भी मुझे प्रसन्न किए बिना मुझे जान नहीं सकता, न ही मेरे महत्व को समझ सकता है, लेकिन जिसने भी मुझे देखा या प्रसन्न किया है, उसे अपनी तुष्टि के लिए पछताना नहीं पड़ता।