श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 9: प्रह्लाद द्वारा नृसिंह देव का प्रार्थनाओं से शान्त किया जाना  »  श्लोक 50
 
 
श्लोक  7.9.50 
 
 
तत्तेऽर्हत्तम नम: स्तुतिकर्मपूजा:
कर्म स्मृतिश्चरणयो: श्रवणं कथायाम् ।
संसेवया त्वयि विनेति षडङ्गया किं
भक्तिं जन: परमहंसगतौ लभेत ॥ ५० ॥
 
अनुवाद
 
  यही कारण है कि हे पूज्य भगवान, जो सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ हैं, मैं आपको नमस्कार करता हूँ, क्योंकि आप के प्रति छह प्रकार की भक्ति अर्थात् प्रार्थना करना, कर्मों का फल भगवान् को समर्पित करना, भगवान् की पूजा करना, भगवान् के लिए कार्य करना, भगवान के चरण कमलों का सदैव स्मरण करना और भगवान की कीर्तियों का श्रवण करना, किये बिना कौन परमहंस को प्राप्त होने वाले लाभ प्राप्त कर सकता है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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