नैते गुणा न गुणिनो महदादयो ये
सर्वे मन: प्रभृतय: सहदेवमर्त्या: ।
आद्यन्तवन्त उरुगाय विदन्ति हि त्वा-
मेवं विमृश्य सुधियो विरमन्ति शब्दात् ॥ ४९ ॥
अनुवाद
प्रकृति के तीनों गुण (सत्व, रज और तम), इन तीनों गुणों के नियंत्रक देवता, पाँच भौतिक तत्व, मन, देवता और मनुष्य भी आपके स्वामित्व को नहीं समझ सकते, क्योंकि ये सभी जन्म और मृत्यु के अधीन हैं। ऐसा विचार करके आध्यात्मिक रूप से उन्नत व्यक्ति भक्ति करने लगे हैं। ऐसे बुद्धिमान व्यक्ति वैदिक अध्ययन की परवाह नहीं करते हैं, निस्संदेह वे व्यावहारिक भक्ति में खुद को लगाते हैं।