श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 9: प्रह्लाद द्वारा नृसिंह देव का प्रार्थनाओं से शान्त किया जाना  »  श्लोक 48
 
 
श्लोक  7.9.48 
 
 
त्वं वायुरग्निरवनिर्वियदम्बु मात्रा:
प्राणेन्द्रियाणि हृदयं चिदनुग्रहश्च ।
सर्वं त्वमेव सगुणो विगुणश्च भूमन्
नान्यत् त्वदस्त्यपि मनोवचसा निरुक्तम् ॥ ४८ ॥
 
अनुवाद
 
  हे परमेश्वर, आप वायु, भूमि, अग्नि, आकाश एवं जल के रूप में विद्यमान हैं। आप तन्मात्राएँ, प्राणवायु, पाँचों इन्द्रियाँ, मन, चेतना तथा मिथ्या अहंकार हैं। वास्तव में, आप सूक्ष्म और स्थूल रूपी समस्त वस्तुएँ हैं। भौतिक तत्त्व और शब्दों या मन से व्यक्त प्रत्येक वस्तु आपके अतिरिक्त कुछ नहीं है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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