श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 9: प्रह्लाद द्वारा नृसिंह देव का प्रार्थनाओं से शान्त किया जाना  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  7.9.47 
 
 
रूपे इमे सदसती तव वेदसृष्टे
बीजाङ्कुराविव न चान्यदरूपकस्य ।
युक्ता: समक्षमुभयत्र विचक्षन्ते त्वां
योगेन वह्निमिव दारुषु नान्यत: स्यात् ॥ ४७ ॥
 
अनुवाद
 
  प्रामाणिक वैदिक ज्ञान के द्वारा मनुष्य यह देख सकता है कि विराट जगत में कार्य एवं कारण के रूप परम पुरुष भगवान के हैं, क्योंकि यह विराट जगत उनकी ऊर्जा है। कार्य और कारण दोनों ही भगवान की ऊर्जाओं के अलावा कुछ भी नहीं हैं। इसलिए, हे प्रभु, जिस प्रकार कोई बुद्धिमान व्यक्ति कार्य-कारण पर विचार करके देख सकता है कि आग किस तरह लकड़ी में व्याप्त है, उसी प्रकार भक्ति में लगे हुए लोग समझ सकते हैं कि आप किस प्रकार कार्य और कारण दोनों हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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