श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 9: प्रह्लाद द्वारा नृसिंह देव का प्रार्थनाओं से शान्त किया जाना  »  श्लोक 42
 
 
श्लोक  7.9.42 
 
 
को न्वत्र तेऽखिलगुरो भगवन्प्रयास
उत्तारणेऽस्य भवसम्भवलोपहेतो: ।
मूढेषु वै महदनुग्रह आर्तबन्धो
किं तेन ते प्रियजनाननुसेवतां न: ॥ ४२ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु, हे सम्पूर्ण जगत के आदि आध्यात्मिक गुरु, आप सृष्टि के कर्ता और नियन्ता हैं, अतः आपकी भक्ति में लगे हुए पतित प्राणियों का उद्धार करने में आपको कौन सी कठिनाई है? आप सभी दुखी मानवता के मित्र हैं और महान लोगों के लिए मूर्खों पर दया दिखाना आवश्यक है। इसलिए मैं सोचता हूं कि आप हम जैसे लोगों पर अहैतुकी कृपा दिखाएंगे जो आपकी सेवा में लगे हुए हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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