को न्वत्र तेऽखिलगुरो भगवन्प्रयास
उत्तारणेऽस्य भवसम्भवलोपहेतो: ।
मूढेषु वै महदनुग्रह आर्तबन्धो
किं तेन ते प्रियजनाननुसेवतां न: ॥ ४२ ॥
अनुवाद
हे प्रभु, हे सम्पूर्ण जगत के आदि आध्यात्मिक गुरु, आप सृष्टि के कर्ता और नियन्ता हैं, अतः आपकी भक्ति में लगे हुए पतित प्राणियों का उद्धार करने में आपको कौन सी कठिनाई है? आप सभी दुखी मानवता के मित्र हैं और महान लोगों के लिए मूर्खों पर दया दिखाना आवश्यक है। इसलिए मैं सोचता हूं कि आप हम जैसे लोगों पर अहैतुकी कृपा दिखाएंगे जो आपकी सेवा में लगे हुए हैं।