श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 9: प्रह्लाद द्वारा नृसिंह देव का प्रार्थनाओं से शान्त किया जाना  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  7.9.35 
 
 
स त्वात्मयोनिरतिविस्मित आश्रितोऽब्जं
कालेन तीव्रतपसा परिशुद्धभाव: ।
त्वामात्मनीश भुवि गन्धमिवातिसूक्ष्मं
भूतेन्द्रियाशयमये विततं ददर्श ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  आत्मयोनि अर्थात् बिना माँ से उत्पन्न ब्रह्माजी ने आश्चर्यचकित होकर कमल के फूल की शरण ली। सैकड़ों सालों की कठोर तपस्या करने के बाद जब वह शुद्ध हुए, तो उन्होंने देखा कि पूरे कारणों के कारण भगवान उनके पूरे शरीर और इंद्रियों में उसी प्रकार फैले हुए थे, जिस प्रकार पृथ्वी में गंध फैली हुई होती है, भले ही गंध बहुत सूक्ष्म होती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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