श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 9: प्रह्लाद द्वारा नृसिंह देव का प्रार्थनाओं से शान्त किया जाना  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  7.9.33 
 
 
तस्यैव ते वपुरिदं निजकालशक्त्या
सञ्चोदितप्रकृतिधर्मण आत्मगूढम् ।
अम्भस्यनन्तशयनाद्विरमत्समाधे-
र्नाभेरभूत् स्वकणिकावटवन्महाब्जम् ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  यह विशाल भौतिक ब्रह्मांड भी आपका ही देह है। पदार्थ का यह पिंड आपकी काल शक्ति द्वारा कंपित होता है, और इस प्रकार प्रकृति के तीनों गुण प्रकट होते हैं। तब, आप शेषनाग या अनंत की शय्या से जाग्रत होते हैं और आपकी नाभि से एक छोटा दिव्य बीज उत्पन्न होता है। इसी बीज से विराट ब्रह्मांड का कमल पुष्प प्रकट होता है, ठीक वैसे ही जैसे एक छोटे बीज से विशाल वट वृक्ष उगता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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