त्वं वा इदं सदसदीश भवांस्ततोऽन्यो
माया यदात्मपरबुद्धिरियं ह्यपार्था ।
यद्यस्य जन्म निधनं स्थितिरीक्षणं च
तद्वैतदेव वसुकालवदष्टितर्वो: ॥ ३१ ॥
अनुवाद
हे भगवान्, हे परमेश्वर, यह संपूर्ण सृष्टि आपके द्वारा उत्पन्न है और विराट जगत आपकी शक्ति का परिणाम है। यद्यपि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड आपके अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है फिर भी आप अपने को उससे अलग रखते हैं। ‘मेरा’ तथा ‘तुम्हारा’ की धारणा निश्चय ही एक प्रकार का भ्रम (माया) है, क्योंकि प्रत्येक वस्तु आपसे उद्भूत होने के कारण आपसे भिन्न नहीं है। निस्सन्देह, विराट जगत आपसे अभिन्न है और संहार भी आपके द्वारा ही किया जाता है। आप तथा ब्रह्माण्ड के बीच का यह सम्बन्ध बीज और वृक्ष अथवा सूक्ष्म कारण और स्थूल अभिव्यक्ति के उदाहरण से समझाया जा सकता है।