श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 9: प्रह्लाद द्वारा नृसिंह देव का प्रार्थनाओं से शान्त किया जाना  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  7.9.30 
 
 
एकस्त्वमेव जगदेतममुष्य यत्त्व-
माद्यन्तयो: पृथगवस्यसि मध्यतश्च ।
सृष्ट्वा गुणव्यतिकरं निजमाययेदं
नानेव तैरवसितस्तदनुप्रविष्ट: ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  हे मेरे भगवान, केवल आप ही अपने आपको संपूर्ण ब्रह्मांड के रूप में प्रकट करते हैं, क्योंकि आप सृष्टि से पहले भी थे, प्रलय के बाद भी रहेंगे और शुरूआत से अंत तक पालनकर्ता बने रहेंगे। यह सब आपकी बाहरी शक्ति द्वारा प्रकृति के तीनों गुणों की क्रिया-प्रतिक्रिया के माध्यम से किया जाता है। इसलिए जो कुछ भी अंदर और बाहर मौजूद है, वह केवल आप ही हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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