क्वाहं रज:प्रभव ईश तमोऽधिकेऽस्मिन्
जात: सुरेतरकुले क्व तवानुकम्पा ।
न ब्रह्मणो न तु भवस्य न वै रमाया
यन्मेऽर्पित: शिरसि पद्मकर: प्रसाद: ॥ २६ ॥
अनुवाद
हे प्रभु, हे परमात्मा, मैं एक ऐसे परिवार में जन्मा हूँ जो घोर नारकीय रजो तथा तमोगुण से भरा हुआ है। मेरी स्थिति क्या है? और आपकी अहैतुकी कृपा के बारे में क्या कहा जा सकता है, जो भगवान ब्रह्मा, भगवान शिव या देवी लक्ष्मी को भी कभी नहीं मिली? आपने कभी भी अपने कमल जैसा हाथ उनके सिर पर नहीं रखा, परन्तु आपने मेरे सिर पर रखा है।