श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 9: प्रह्लाद द्वारा नृसिंह देव का प्रार्थनाओं से शान्त किया जाना  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  7.9.20 
 
 
यस्मिन्यतो यर्हि येन च यस्य यस्माद्
यस्मै यथा यदुत यस्त्वपर: परो वा ।
भाव: करोति विकरोति पृथक्स्वभाव:
सञ्चोदितस्तदखिलं भवत: स्वरूपम् ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु, इस जगत में हर प्राणी प्रकृति के गुणों - सत्व, रज और तम गुणों के वशीभूत है। सबसे महान व्यक्तित्व, भगवान ब्रह्मा से लेकर एक छोटी सी चींटी तक - सभी प्राणी इन गुणों के प्रभाव में ही काम करते हैं। इसलिए, इस जगत में हर कोई आपकी ऊर्जा से प्रभावित है। जिस कारण से वे काम करते हैं, जिस जगह पर वे काम करते हैं, जिस समय पर वे काम करते हैं, जिस पदार्थ के कारण वे काम करते हैं, जीवन का वह लक्ष्य जिसे उन्होंने अंतिम माना है, और उस लक्ष्य को प्राप्त करने की जो प्रक्रिया है - ये सभी आपकी ऊर्जा की अभिव्यक्ति के अलावा और कुछ नहीं हैं। निःसंदेह, ऊर्जा और ऊर्जा का संचालन करने वाला एक ही है, इसलिए, ये सभी आपकी ही अभिव्यक्तियाँ हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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