श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 9: प्रह्लाद द्वारा नृसिंह देव का प्रार्थनाओं से शान्त किया जाना  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  7.9.2 
 
 
साक्षात् श्री: प्रेषिता देवैर्द‍ृष्ट्वा तं महदद्भ‍ुतम् ।
अदृष्टाश्रुतपूर्वत्वात् सा नोपेयाय शङ्किता ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  सब देवताओं ने वहाँ उपस्थित लक्ष्मी जी से प्रार्थना की कि वे जा कर भगवान से निवेदन करें पर लक्ष्मी जी भी कभी भी भगवान का इतना सुंदर और असाधारण रूप नहीं देख पाईं थीं, इसलिए वे उनके पास नहीं जा सकीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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