हे नृसिम्हादेव, हे परमेश्वर, देहधारी जीवों को अपने शरीर के माध्यम से ही यह संसार दिखता है। आप जब उन पर अपना ध्यान नहीं देते तो वे भौतिक दृष्टिकोण से ही अपने कल्याण की चिंता करते हैं। इस तरह वे जो भी उपाय करते हैं वे क्षणिक लाभ तो पहुँचाते हैं, परंतु वे स्थायी नहीं होते। उदाहरण के लिए एक पिता और माँ अपने बच्चे की रक्षा नहीं कर सकते, वैद्य और दवाएँ रोगी के कष्टों को दूर नहीं कर सकतीं। इसी तरह नाव पर सवार डूबता हुआ मनुष्य भी तभी तक सुरक्षित है, जब तक नाव सही सलामत है। दूसरा कोई भी व्यक्ति उसे डूबने से नहीं बचा सकता।