श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 9: प्रह्लाद द्वारा नृसिंह देव का प्रार्थनाओं से शान्त किया जाना  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  7.9.19 
 
 
बालस्य नेह शरणं पितरौ नृसिंह
नार्तस्य चागदमुदन्वति मज्जतो नौ: ।
तप्तस्य तत्प्रतिविधिर्य इहाञ्जसेष्ट-
स्तावद्विभो तनुभृतां त्वदुपेक्षितानाम् ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  हे नृसिम्हादेव, हे परमेश्वर, देहधारी जीवों को अपने शरीर के माध्यम से ही यह संसार दिखता है। आप जब उन पर अपना ध्यान नहीं देते तो वे भौतिक दृष्टिकोण से ही अपने कल्याण की चिंता करते हैं। इस तरह वे जो भी उपाय करते हैं वे क्षणिक लाभ तो पहुँचाते हैं, परंतु वे स्थायी नहीं होते। उदाहरण के लिए एक पिता और माँ अपने बच्चे की रक्षा नहीं कर सकते, वैद्य और दवाएँ रोगी के कष्टों को दूर नहीं कर सकतीं। इसी तरह नाव पर सवार डूबता हुआ मनुष्य भी तभी तक सुरक्षित है, जब तक नाव सही सलामत है। दूसरा कोई भी व्यक्ति उसे डूबने से नहीं बचा सकता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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