श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 9: प्रह्लाद द्वारा नृसिंह देव का प्रार्थनाओं से शान्त किया जाना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  7.9.18 
 
 
सोऽहं प्रियस्य सुहृद: परदेवताया
लीलाकथास्तव नृसिंह विरिञ्चगीता: ।
अञ्जस्तितर्म्यनुगृणन्गुणविप्रमुक्तो
दुर्गाणि ते पदयुगालयहंससङ्ग: ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  हे भगवान नृसिंहदेव, आपके प्रेममय दिव्य सेवा में मुक्त आत्माओं (हंसों) की संगति में जुड़कर मैं प्रकृति के तीन गुणों के स्पर्श से पूरी तरह से शुद्ध हो जाऊंगा और आपके महान गुणों का कीर्तन कर पाऊंगा जो मेरे लिए अत्यंत प्रिय हैं। मैं ब्रह्मा और उनके शिष्यों के पदचिन्हों पर चलते हुए आपकी महिमाओं का कीर्तन करूंगा। इस तरह से मैं निस्संदेह अज्ञान के सागर को पार कर पाऊंगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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