श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 9: प्रह्लाद द्वारा नृसिंह देव का प्रार्थनाओं से शान्त किया जाना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  7.9.15 
 
 
नाहं बिभेम्यजित तेऽतिभयानकास्य-
जिह्वार्कनेत्रभ्रुकुटीरभसोग्रदंष्ट्रात् ।
आन्त्रस्रज: क्षतजकेशरशङ्कुकर्णा-
न्निर्ह्रादभीतदिगिभादरिभिन्नखाग्रात् ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे पराजित न होने वाले स्वामी, मैं निश्चित रूप से आपके भयंकर मुँह, जीभ से नहीं डरता। सूर्य के समान आपकी चमकती हुई आँखों या भौहों के टेढ़ेपन से भी मुझे कोई भय नहीं है। मैं नुकीले दाँतों, आँतों की माला और खून से लथपथ बालों से भी नहीं डरता। आपके तीखे कान या आपका गर्जन जिससे हाथी दूर-दूर भाग जाते हैं, इनसे भी मुझे कोई डर नहीं लगता।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.