श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 9: प्रह्लाद द्वारा नृसिंह देव का प्रार्थनाओं से शान्त किया जाना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  7.9.14 
 
 
तद्यच्छ मन्युमसुरश्च हतस्त्वयाद्य
मोदेत साधुरपि वृश्चिकसर्पहत्या ।
लोकाश्च निर्वृतिमिता: प्रतियन्ति सर्वे
रूपं नृसिंह विभयाय जना: स्मरन्ति ॥ १४ ॥
 
अनुवाद
 
  अतएव, हे नृसिंह भगवान, अब आप अपना क्रोध त्याग दीजिए, क्योंकि मेरे पिता महान असुर हिरण्यकशिपु का वध हो चुका है। जब साधु पुरुष भी सर्प या बिच्छू के मारे जाने पर प्रसन्न होते हैं, तब इस आसुरी के वध से समस्त लोकों को परम संतुष्टि प्राप्त हुई है। अब वे अपने सुख को निश्चिंत मानते हैं और भयमुक्त होने के लिए सदैव आपके इस कल्याणकारी अवतार का स्मरण करते रहेंगे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.