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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान
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अध्याय 9: प्रह्लाद द्वारा नृसिंह देव का प्रार्थनाओं से शान्त किया जाना
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श्लोक 11
श्लोक
7.9.11
नैवात्मन: प्रभुरयं निजलाभपूर्णो
मानं जनादविदुष: करुणो वृणीते ।
यद् यज्जनो भगवते विदधीत मानं
तच्चात्मने प्रतिमुखस्य यथा मुखश्री: ॥ ११ ॥
अनुवाद
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भगवान सदैव पूर्ण संतुष्ट रहते हैं, अतएव जब उन्हें कुछ भेंट की जाती है, तो वह भक्त के लाभ के लिए ही होती है। कैसे? उदाहरणार्थ, जब चेहरे पर सजावट की जाती है तो दर्पण में उसकी छवि भी सजी दिखाई देती है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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