श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 9: प्रह्लाद द्वारा नृसिंह देव का प्रार्थनाओं से शान्त किया जाना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  7.9.10 
 
 
विप्राद् द्विषड्‌गुणयुतादरविन्दनाभ-
पादारविन्दविमुखात् श्वपचं वरिष्ठम् ।
मन्ये तदर्पितमनोवचनेहितार्थ-
प्राणं पुनाति स कुलं न तु भूरिमान: ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  यदि ब्राह्मण में ब्राह्मणत्व के बारहों गुण हों पर वह भक्त न हो और भगवान के चरणकमलों से विमुख रहे तो वह उस चाण्डाल भक्त से भी अधम है, जो मन, वचन, कर्म, सम्पत्ति और जीवन को परमेश्वर के प्रति अर्पित कर देता है। ऐसा भक्त उस ब्राह्मण से श्रेष्ठ है क्योंकि भक्त अपने पूरे परिवार को पवित्र कर सकता है जबकि झूठी प्रतिष्ठा वाला तथाकथित ब्राह्मण स्वयं को भी शुद्ध नहीं कर सकता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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