श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 8: भगवान् नृसिंह द्वारा असुरराज का वध  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  7.8.9 
 
 
जह्यासुरं भावमिमं त्वमात्मन:
समं मनो धत्स्व न सन्ति विद्विष: ।
ऋतेऽजितादात्मन उत्पथे स्थितात्
तद्धि ह्यनन्तस्य महत्समर्हणम् ॥ ९ ॥
 
अनुवाद
 
  प्रह्लाद महाराज ने कहा: हे पिता, अपनी आसुरी प्रवृत्ति छोड़ दें। आप अपने हृदय में शत्रु-मित्र में भेदभाव न करें, अपने मन को सबों के प्रति समभाव बनाएँ। इस संसार में अनियंत्रित और पथभ्रष्ट मन के अलावा कोई शत्रु नहीं है। जब कोई व्यक्ति हर किसी को समता के पद पर देखता है तभी वो भगवान की ठीक से पूजा कर पाता है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.